पत्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होता है।
जब वह आम आदमी के लिए बेबाकी निडरता के साथ अपनी आवाज बुलंद करता है
तो वह व्यवस्था को नापसंद आती है।
इस कड़ी में पिछले कई वर्षों से पीड़ित हैं देश के नामी गिरामी पत्रकार...
पुण्य प्रसून वाजपेई, रवीश कुमार, अजीत अंजुम जैसे पत्रकारों के साथ भी नहीं हुआ अच्छा व्यवहार।
वह अपनी बेबाक पत्रकारिता के दम पर सत्ता को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहे थे।
तो उन्हें हाशिए पर भेजने की साजिश की गई।
अब पत्रकारिता में महत्वपूर्ण सवाल बन गया आम उल्टे हाथ से काटकर खाना।
देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, किसानों, छात्रों की समस्याओं ने अंतरिक्ष में डेरा डाल दिया है।