अशोक स्तंभ : भारत की आत्मा और शाश्वत संस्कृति का प्रतीक

बृज बिहारी दुबे
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भूमिकाभारतीय सभ्यता संसार की सबसे प्राचीन और गौरवशाली सभ्यताओं में से एक है। यहाँ की धरती ने न केवल महान सम्राटों, ऋषियों और दार्शनिकों को जन्म दिया, बल्कि मानवता के कल्याण के लिए अनेक ऐसे प्रतीक भी गढ़े हैं जो आज भी दुनिया को प्रेरणा देते हैं। इन्हीं अद्वितीय प्रतीकों में से एक है अशोक स्तंभ।

अशोक स्तंभ केवल किसी राजा की सत्ता या साम्राज्य विस्तार का स्मारक नहीं है, बल्कि यह मानवता, शांति, धर्म, करुणा और न्याय का संदेशवाहक है। यह स्तंभ भारतीय संस्कृति की गहराई, उसके मूल्यों और उसकी सर्वसमावेशी सोच को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है।


सम्राट अशोक और उनका परिवर्तित जीवन

सम्राट अशोक (273 ई.पू. से 232 ई.पू. तक) मौर्य वंश के सबसे महान शासक माने जाते हैं। अपने शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों में अशोक एक शक्तिशाली, वीर और महत्वाकांक्षी राजा थे। उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए कई युद्ध किए।

सबसे महत्वपूर्ण था कलिंग युद्ध (261 ई.पू.)। इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए और असंख्य परिवार उजड़ गए। जब सम्राट अशोक ने युद्धभूमि में पड़ी लाशों और करुण पुकारों को देखा, तो उनका हृदय द्रवित हो उठा। यही वह क्षण था जब उनके जीवन की दिशा बदल गई।

उन्होंने शस्त्र त्यागकर धम्म (धर्म) का मार्ग अपनाया। बौद्ध धर्म के सिद्धांत—अहिंसा, करुणा, समता और सत्य—उनके जीवन का आधार बन गए। यहीं से शुरू हुआ अशोक स्तंभों का निर्माण।



अशोक स्तंभों का निर्माण और उद्देश्य

सम्राट अशोक ने अपने प्रजाजनों तक धर्म और शांति का संदेश पहुँचाने के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में स्तंभों का निर्माण कराया।

ये स्तंभ प्रायः चमकीले बलुआ पत्थर (चुनार पत्थर) से बनाए गए।

इन पर बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ और अशोक के धम्म लेख खुदवाए गए।

स्तंभों को सड़कों, नगरों, तीर्थस्थलों और धार्मिक स्थानों पर स्थापित किया गया ताकि अधिक से अधिक लोग इन्हें देख और पढ़ सकें।


अशोक स्तंभ केवल शिलालेख नहीं थे, बल्कि वे जनता से प्रत्यक्ष संवाद का माध्यम थे। उस समय यह राजा और प्रजा को जोड़ने का अद्वितीय तरीका था।



अशोक स्तंभ की संरचना और स्थापत्य कला

अशोक स्तंभ भारतीय स्थापत्य और शिल्पकला की अद्वितीय मिसाल हैं।

1. ऊँचाई और आकार : इन स्तंभों की ऊँचाई 12 से 15 मीटर तक होती थी। ये एक ही पत्थर से बने होते थे।


2. आधार (Base) : गोलाकार या चतुर्भुज आधार पर ये स्तंभ खड़े रहते थे।


3. स्तंभ शरीर (Shaft) : चिकने, चमकीले और बेलनाकार स्तंभ, जो ऊपर की ओर हल्के पतले होते जाते थे।


4. अभिलेख (Inscriptions) : स्तंभों पर ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में धम्म लेख खुदे रहते थे।


5. शीर्ष भाग (Capital) : यही इन स्तंभों की सबसे विशेष पहचान है।

सिंह स्तंभ : चार दिशाओं में मुख किए हुए सिंह, जो शक्ति और साहस के प्रतीक हैं।

घोड़ा, बैल, हाथी : जीवन के विभिन्न गुणों और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

धर्मचक्र (चक्र) : जीवन की गति, न्याय और धर्म का प्रतीक।




इनमें से सबसे प्रसिद्ध है सारनाथ का सिंह स्तंभ, जिसे आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया है।



सारनाथ का सिंह स्तंभ : भारत का राष्ट्रीय प्रतीक

सारनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। यहीं पर अशोक ने एक स्तंभ खड़ा करवाया।

इस स्तंभ के शीर्ष पर चार मुखों वाले सिंह बने हैं, जो चारों दिशाओं में मुख किए हैं। यह दर्शाता है कि भारत का संदेश चारों दिशाओं में फैले और पूरी दुनिया को प्रकाशमान करे।

सिंहों के नीचे बने घोड़े, बैल, हाथी और धर्मचक्र जीवन की निरंतर गति और संतुलन का प्रतीक हैं।

1950 में भारत सरकार ने इस सिंह स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक घोषित किया। साथ ही, सिंहों के नीचे बने धर्मचक्र (अशोक चक्र) को भारतीय तिरंगे के बीच में स्थान दिया गया।



अशोक स्तंभ पर अंकित धम्म लेख

अशोक स्तंभों पर जो लेख खुदे हैं, उनमें जीवन की गहन शिक्षाएँ छिपी हुई हैं। इनमें से कुछ प्रमुख शिक्षाएँ—

1. सभी धर्मों और सम्प्रदायों का आदर करो।


2. सभी जीवों पर दया करो।


3. माता-पिता, गुरु, बुजुर्गों का सम्मान करो।


4. सत्य, अहिंसा और संयम का पालन करो।


5. न्याय और समानता को जीवन का आधार बनाओ।



ये उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस युग में थे।



भारत के विभिन्न अशोक स्तंभ

अशोक ने केवल एक या दो स्तंभ ही नहीं बनवाए, बल्कि पूरे भारत में कई स्तंभ स्थापित किए। इनमें प्रमुख हैं—

सारनाथ स्तंभ (उत्तर प्रदेश) : राष्ट्रीय प्रतीक।

लौरिया नंदनगढ़ स्तंभ (बिहार) : धम्म लेखों के लिए प्रसिद्ध।

लौरिया अरेराज स्तंभ (बिहार)

रामपुरवा स्तंभ (बिहार) : शीर्ष पर बैल की आकृति।

वैशाली स्तंभ (बिहार) : भगवान बुद्ध की स्मृति से जुड़ा।

मेरठ स्तंभ (उत्तर प्रदेश)

कौशाम्बी स्तंभ (उत्तर प्रदेश)

दिल्ली का अशोक स्तंभ (फ़िरोज़शाह कोटला और मेहरौली)


इन स्तंभों के माध्यम से सम्राट अशोक ने पूरे साम्राज्य में धर्म और शांति का प्रचार किया।


अशोक स्तंभ : कला और विज्ञान का अद्भुत संगम

अशोक स्तंभ केवल धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे उस समय के वास्तु विज्ञान और शिल्पकला के उत्कृष्ट उदाहरण भी हैं।

इतने विशाल स्तंभों को एक ही पत्थर से गढ़ना और उन्हें खड़ा करना उस समय की तकनीकी क्षमता को दर्शाता है।

चिकने और चमकदार पत्थरों की पॉलिश आज भी चमकती है।

स्थापत्य की यह शैली यूनानी और फारसी कला से अलग, पूरी तरह भारतीय परंपरा की देन है।


अशोक स्तंभ का सांस्कृतिक महत्व

अशोक स्तंभ हमें भारत की उस आत्मा से जोड़ते हैं जो हमेशा से शांति, करुणा और मानवता का संदेश देती रही है।

यह हमें बताता है कि शक्ति का वास्तविक उपयोग विनाश में नहीं, बल्कि सृजन में है।

यह हमें याद दिलाता है कि धर्म का असली अर्थ है—सत्य, न्याय और मानवता की सेवा।

यह स्तंभ हमें यह भी सिखाते हैं कि एक राजा या शासक की महानता केवल उसकी विजय में नहीं, बल्कि उसके चरित्र और करुणा में होती है


आधुनिक भारत में अशोक स्तंभ की प्रासंगिकता

आज जब दुनिया हिंसा, युद्ध, असमानता और संघर्षों से जूझ रही है, अशोक स्तंभ के संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

यह हमें शांति और सह-अस्तित्व की राह दिखाते हैं।

यह हमें राष्ट्रीय एकता और बंधुत्व की प्रेरणा देते हैं।

यह हमें याद दिलाते हैं कि भारत की पहचान केवल उसकी प्राचीनता में नहीं, बल्कि उसके सद्गुणों और सार्वभौमिक मूल्यों में है।



निष्कर्ष

अशोक स्तंभ केवल पत्थर की संरचना नहीं हैं, बल्कि यह भारत की आत्मा के जीवंत प्रतीक हैं। ये हमें अतीत की महानता की याद दिलाते हैं और वर्तमान व भविष्य को दिशा दिखाते हैं।

आज जब हम राष्ट्रीय प्रतीक और तिरंगे पर बने अशोक चक्र को देखते हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि यह केवल एक चिह्न नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा है, जो हमें सत्य, धर्म, न्याय और मानवता के मार्ग पर चलने का संदेश देती है।

अशोक स्तंभ वास्तव में भारत के उस गौरवमय अतीत के साक्षी हैं, जिसने पूरी दुनिया को यह सिखाया कि—
“अहिंसा और करुणा ही मानवता का सच्चा मार्ग है।”



 लेखक : अलोक कुमार त्रिपाठी

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