क्रांतिकारी मीडिया कर्मियों यह लड़ाई राजनीतिक सत्ता और मीडिया की स्वतंत्रता के बीच की है

बृज बिहारी दुबे
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​ भारतीय मीडिया फाउंडेशन (नेशनल) एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सामयिक विषय उठाया है। लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका पर यह बहस बहुत अहम है, खासकर जब इसे संवैधानिक दर्जा देने की बात हो रही है। 
आइए, इस पूरे मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।

*​लोकतंत्र का चौथा स्तंभ:*

 संवैधानिक दर्जे की आवश्यकता
​लोकतंत्र में मीडिया को अक्सर 'चौथा स्तंभ' कहा जाता है, जो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ मिलकर लोकतंत्र की नींव को मजबूत करता है।
 लेकिन, बिना संवैधानिक दर्जे के, इसकी भूमिका हमेशा सवालों के घेरे में रहती है। भारतीय मीडिया फाउंडेशन (नेशनल) की यह मुहिम इसी स्थिति को बदलने के लिए है। केंद्रीय सलाहकार परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष कृष्ण माधव मिश्रा जी का यह कहना बिल्कुल सही है कि अब यह आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है।
​संवैधानिक दर्जा मिलने से मीडिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहकर काम करने का अधिकार मिलेगा। यह 'गोदी मीडिया' जैसे आरोपों से मुक्ति दिलाएगा और पत्रकारिता की विश्वसनीयता को बहाल करेगा। जब तक मीडिया पर किसी राजनीतिक दल या सत्ता का दबाव रहेगा, तब तक वह सच को पूरी निष्पक्षता से सामने नहीं ला पाएगा। संवैधानिक दर्जा मिलने से मीडिया की जवाबदेही जनता और संविधान के प्रति सीधी हो जाएगी।

*​नेताओं के झगड़ों से दूरी और मिशन के प्रति समर्पण*

​कृष्ण माधव मिश्रा जी ने सभी मीडिया अधिकारियों और पदाधिकारियों से एक बहुत ही महत्वपूर्ण अपील की है: राजनीतिक दलों के आपसी झगड़ों से दूर रहें। यह बात आज के समय में बहुत मायने रखती है। अक्सर मीडिया राजनीतिक पार्टियों के बीच की लड़ाइयों में उलझकर अपना मुख्य उद्देश्य खो देता है।
​उन्होंने बताया कि 
 "अब हमारा आंदोलन नेतागिरी बनाम मीडिया गिरी के रूप में स्थापित हो चुका है" इस पूरे आंदोलन का सार है। 
इसका मतलब है कि यह लड़ाई राजनीतिक सत्ता और मीडिया की स्वतंत्रता के बीच की है। यह लड़ाई सिर्फ खबर दिखाने या लिखने की नहीं है, बल्कि उस मंच को बचाने की है जहाँ से सच की आवाज़ उठाई जा सके।

*​सत्य की खोज एवं जनता का शासन जनता के द्वारा जनता के लिए  संवैधानिक दर्जा अनिवार्य*

कृष्ण माधव ​मिश्रा जी का यह कथन कि "जब तक लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को संवैधानिक दर्जा नहीं मिलेगा, तब तक किसी भी सत्य की खोज पर काम नहीं कर सकते हैं" इस मुहिम की जड़ है। उनका मानना है कि बिना संवैधानिक सुरक्षा के पत्रकार निडर होकर काम नहीं कर सकते। उन्हें हमेशा सत्ता या अन्य ताकतों के दबाव में रहना पड़ेगा, जिससे वे सच्चाई को पूरी तरह से उजागर नहीं कर पाएंगे और जनता का शासन जनता के द्वारा जनता के लिए जो महापुरुषों का संकल्प है वह पूरा नहीं हो सकता ।
​यह मुहिम न केवल मीडियाकर्मियों के लिए है, बल्कि पूरे देश के लिए है। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया ही समाज को सही दिशा दिखा सकता है और जनता को जागरूक कर सकता है। यह आंदोलन इसी दिशा में एक बड़ा और निर्णायक कदम है। अब यह देखना है कि यह मुहिम कितनी सफल होती है और भारतीय लोकतंत्र को कितना मजबूत करती है।

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