जौनपुर जिला महिला अस्पताल में बड़ा सवाल: धर्म देखकर इलाज?मुसलमान होना गुनाह है क्या

बृज बिहारी दुबे
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(रिपोर्ट राजन सिंह)

जौनपुर। “सबका साथ–सबका विकास” का नारा देने वाली सरकार के दौर में यदि कोई चिकित्सक धर्म देखकर इलाज करने से मना कर दे, तो यह केवल इंसानियत पर ही नहीं बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल खड़ा करता है।

ऐसा ही मामला मंगलवार की रात सामने आया, जब चंदवक कस्बे के बीरीबारी गांव निवासी शमा परवीन (27 वर्ष) पत्नी मोहम्मद नवाज़ को प्रसव पीड़ा होने पर जिला महिला अस्पताल लाया गया। महिला दर्द से कराहती रही, परंतु बेड पर भर्ती होने के बावजूद घंटे भर तक कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं हुआ।

जब पति ने बार-बार महिला डॉक्टर को बुलाया तो आरोप है कि ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने आकर कहा – “तुम मुसलमान हो, हम इलाज नहीं करेंगे।” यह सुनकर परिजन सन्न रह गए। अस्पताल में मौजूद अन्य लोग भी हैरान रह गए कि आखिर इंसानियत से बड़ी कोई जाति या धर्म हो सकता है क्या?

यह कथित बयान अब पूरे जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग कह रहे हैं कि यदि धर्म देखकर इलाज होगा तो गरीब और मजबूर जनता कहाँ जाएगी? स्वास्थ्य सेवाएं किसी जाति या मजहब की नहीं, बल्कि हर नागरिक की मौलिक आवश्यकता हैं।

इस घटना ने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि –
👉 क्या सरकारी अस्पतालों में भी अब हिंदू–मुसलमान देखकर इलाज होगा?
👉 क्या मुसलमान होना गुनाह है?
👉 क्या मानवता और डॉक्टर की शपथ इतनी कमजोर हो चुकी है?

स्थानीय लोगों ने प्रशासन से इस मामले की कड़ी जाँच और संबंधित डॉक्टर पर कठोर कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि अगर ऐसे मामलों पर सख्ती नहीं हुई तो आने वाले दिनों में स्वास्थ्य सेवाओं का विश्वास टूट जाएगा।

यह सिर्फ एक परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे समाज की चेतावनी है कि भेदभाव से ऊपर उठकर ही एक सशक्त और न्यायपूर्ण भारत का निर्माण संभव है।

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