सूचना का अधिकार (RTI) पर एक विचार:-

बृज बिहारी दुबे
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   (लेखक आलोक कुमार त्रिपाठी)

खंड 1 : प्रस्तावना और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

लोकतंत्र की सफलता नागरिकों की भागीदारी और शासन की पारदर्शिता पर निर्भर करती है। यदि नागरिक यह न जान पाएँ कि उनके प्रतिनिधि और अधिकारी किस प्रकार निर्णय ले रहे हैं, योजनाओं पर कितना खर्च कर रहे हैं, और काम की प्रगति कितनी है, तो लोकतंत्र केवल कागज़ पर ही रह जाएगा। भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में नागरिकों को सरकारी कार्यों की जानकारी मिलना आवश्यक है।

इसी सोच ने सूचना के अधिकार (Right to Information – RTI) की नींव रखी। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को लागू करने से पहले भारत में सूचना की गोपनीयता का वातावरण था। ब्रिटिश काल में बने Official Secrets Act, 1923 ने सरकारी कामकाज को गुप्त रखने पर ज़ोर दिया था। आम नागरिक सरकारी विभागों से सवाल नहीं पूछ सकता था।

लेकिन स्वतंत्रता के बाद यह भावना मजबूत हुई कि जनता को सरकार से सवाल पूछने और जवाब पाने का अधिकार होना चाहिए। धीरे-धीरे मध्यप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और दिल्ली जैसे राज्यों में सूचना का अधिकार कानून का मसौदा लाया गया। अंततः 12 अक्टूबर 2005 को पूरे देश में RTI Act 2005 लागू हुआ। यह भारतीय लोकतंत्र की दिशा बदलने वाला कदम साबित हुआ।



खंड 2 : सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की संरचना

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को सूचना उपलब्ध कराना है। इसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं –

1. परिभाषा –

सूचना का अर्थ किसी भी रूप में उपलब्ध सामग्री से है: दस्तावेज़, रिपोर्ट, ईमेल, सर्कुलर, नोटशीट, आदेश आदि।

सार्वजनिक प्राधिकरण (Public Authority) से तात्पर्य है – कोई भी सरकारी विभाग, मंत्रालय, नगर निगम, पंचायत, या सरकारी धन से चलने वाली संस्था।



2. सूचना अधिकारी की नियुक्ति –
प्रत्येक विभाग में लोक सूचना अधिकारी (PIO) और सहायक सूचना अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।


3. सूचना पाने की समयसीमा –

सामान्य मामलों में – 30 दिन के भीतर।

जीवन/स्वतंत्रता से जुड़ी सूचना – 48 घंटों में।

यदि सूचना तीसरे पक्ष से संबंधित है – 40 दिन के भीतर।



4. शुल्क –
साधारण आवेदन के लिए 10 रुपये का शुल्क निर्धारित है। BPL (गरीबी रेखा से नीचे) परिवारों को शुल्क नहीं देना पड़ता।


5. अपील की व्यवस्था –
यदि सूचना अधिकारी समय पर जानकारी न दे या गलत सूचना दे, तो नागरिक प्रथम अपील अधिकारी और उसके बाद राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में अपील कर सकता है।


6. अपवाद (Exemptions) –
कुछ जानकारी RTI से बाहर है, जैसे –

राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक जानकारी।

विदेश नीति से जुड़ी गोपनीय सूचनाएँ।

न्यायालय की कार्यवाही से जुड़ी कुछ बातें।

व्यक्तिगत जीवन और निजता से संबंधित जानकारी।





खंड 3 : RTI का महत्व और प्रभाव

सूचना का अधिकार केवल जानकारी पाने का साधन नहीं है, बल्कि यह नागरिकों के हाथों में लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है।

1. पारदर्शिता और जवाबदेही
जब कोई विभाग जानता है कि उसकी हर गतिविधि पर नागरिक सवाल पूछ सकते हैं, तो कार्यप्रणाली पारदर्शी बनती है।


2. भ्रष्टाचार पर अंकुश
कई घोटाले RTI की मदद से उजागर हुए हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) में राशन वितरण की गड़बड़ियाँ RTI से सामने आईं।


3. नागरिक सशक्तिकरण
आम आदमी, चाहे गरीब हो या अमीर, अब सीधे सरकारी अधिकारियों से सवाल पूछ सकता है। यह लोकतंत्र का असली सशक्तिकरण है।


4. नीतियों में सुधार
कई बार नागरिकों की RTI से प्राप्त प्रतिक्रियाएँ सरकार की नीतियों में बदलाव का कारण बनीं।


5. सूचना = शक्ति
जैसा कि कहा जाता है, “Knowledge is Power”। जब जनता को सूचना मिलती है तो वह सरकार को जिम्मेदार ठहराती है।




खंड 4 : RTI के कुछ उल्लेखनीय उदाहरण

RTI अधिनियम लागू होने के बाद कई ऐसे उदाहरण सामने आए जिन्होंने देश की राजनीति और प्रशासन को हिला दिया।

1. दिल्ली में राशन घोटाला –
RTI से खुलासा हुआ कि जिन परिवारों को राशन मिलना चाहिए था, उनकी दुकानों से राशन कालाबाज़ारी में बिक गया।


2. मनरेगा (MGNREGA) में गड़बड़ियाँ –
कई राज्यों में ग्रामीणों ने RTI के जरिए मजदूरी भुगतान, फर्जी नाम, और अधूरी परियोजनाओं का सच उजागर किया।


3. शिक्षा विभाग –
छात्रों ने परीक्षा परिणाम और उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच RTI के तहत प्राप्त कराई।


4. राजनेताओं की संपत्ति –
कई बार नेताओं की संपत्ति और आयकर विवरण RTI से सामने आए।



ये उदाहरण बताते हैं कि RTI केवल कानून नहीं, बल्कि जनहित की क्रांति है।



खंड 5 : चुनौतियाँ और सीमाएँ

हालाँकि RTI अधिनियम ने जनता को बड़ी ताकत दी है, लेकिन इसकी कुछ चुनौतियाँ भी हैं –

1. जानकारी देने में देरी –
कई बार अधिकारी जानबूझकर समय पर सूचना नहीं देते।


2. अधिकारियों की उदासीनता –
कुछ विभाग RTI को बोझ मानते हैं और टाल-मटोल करते हैं।


3. जानकारी देने से इनकार –
अपवादों (Exemptions) का बहाना बनाकर जानकारी छुपा ली जाती है।


4. RTI कार्यकर्ताओं पर खतरा –
कई ईमानदार RTI कार्यकर्ताओं को धमकियाँ मिलीं और कुछ की हत्या भी हुई।


5. डिजिटल अंतराल –
गाँवों में लोग ऑनलाइन RTI आवेदन करने में असमर्थ रहते हैं।




खंड 6 : समाधान और सुधार के उपाय

RTI को और प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय जरूरी हैं –

1. जागरूकता अभियान
गाँव-गाँव और स्कूल-कॉलेज में RTI की जानकारी दी जाए।


2. ऑनलाइन प्रणाली का विस्तार
हर विभाग में ई-RTI पोर्टल हो, जिससे आवेदन करना आसान हो।


3. अधिकारियों की जवाबदेही
जो अधिकारी सूचना न दें, उन पर आर्थिक दंड लगाया जाए।


4. RTI कार्यकर्ताओं की सुरक्षा
उन्हें कानूनी और प्रशासनिक सुरक्षा दी जानी चाहिए।


5. प्रशिक्षण
अधिकारियों और कर्मचारियों को RTI कानून की सही जानकारी दी जाए।





खंड 7 : RTI और लोकतंत्र का भविष्य

RTI लोकतंत्र का आधार स्तंभ है। यह केवल भ्रष्टाचार को रोकने का उपकरण नहीं, बल्कि यह जनता और सरकार के बीच पुल का काम करता है। जैसे-जैसे तकनीक बढ़ रही है, डिजिटल RTI और प्रोएक्टिव डिस्क्लोजर (यानी सरकार खुद ही जानकारी जनता को उपलब्ध कराए) को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

यदि सरकारें और नागरिक दोनों RTI का सही इस्तेमाल करें, तो भारत एक सुशासन का आदर्श मॉडल बन सकता है।


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उपसंहार

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 वास्तव में भारतीय लोकतंत्र की आत्मा को मजबूत करने वाला कानून है। यह हर नागरिक को यह भरोसा दिलाता है कि सरकार जनता की है और जनता के प्रति जवाबदेह है।

जैसा कि गांधीजी ने कहा था –
“सच्चा लोकतंत्र वही है जिसमें जनता सरकार से सवाल पूछ सके।”

RTI इसी विचार को साकार करता है। यदि नागरिक जागरूक रहें और RTI का सही उपयोग करें तो न केवल भ्रष्टाचार घटेगा, बल्कि लोकतंत्र की जड़ें और गहरी  होगी

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