आज से पितृपक्ष आरंभ, सभी करेंगे अपने पितरों को याद

बृज बिहारी दुबे
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गिरिडीह के प्राचीन मंदिर श्री महावीर मंदिर हनुमानगढ़ के पुजारी पंडित श्याम सुंदर पाठक बताते हैं की पितृपक्ष का यह समय पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करने का है। पितृऋण चुकाने और पितरों को संतुष्ट करने के लिए पिंडदान, जल तर्पण और ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक है। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और गृहस्थ को दीर्घायु, संतान, धन-संपत्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पंडित श्यामसुंदर पाठक के अनुसार पितृपक्ष में श्राद्ध दो प्रकार के होते हैं। एक तो मृत्यु या क्षय तिथि पर और दूसरा पितृपक्ष के दौरान, जिस तिथि को पितर का निधन हुआ या उनका दाह संस्कार हुआ। उन्होंने कुश और तिल का विशेष महत्व भी बताया। कुश को जल और वनस्पतियों का सार माना जाता है और तिल पितरों को प्रिय होने के साथ दुष्टात्माओं को दूर भगाने वाला माना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश कुश के क्रमशः जड़, मध्य और अग्रभाग में निवास करते हैं। इस वर्ष महालय श्राद्ध की तिथियाँ इस प्रकार हैं। मूकबधिर पितृ का श्राद्ध और पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध 7 सितंबर को, प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध 8 सितंबर को, द्वितीया तिथि का श्राद्ध 9 सितंबर को और तृतीया एवं चतुर्थी तिथि का श्राद्ध 10 सितंबर को किया जाएगा। पंचमी तिथि का श्राद्ध 11 सितंबर को, षष्ठी तिथि का श्राद्ध 12 सितंबर को, सप्तमी तिथि का श्राद्ध 13 सितंबर को, अष्टमी तिथि का श्राद्ध 14 सितंबर को, नवमी तिथि और सौभाग्यवती श्राद्ध 15 सितंबर को, दशमी तिथि का श्राद्ध 16 सितंबर को, एकादशी तिथि का श्राद्ध 17 सितंबर को, द्वादशी तिथि और सन्यासियों का श्राद्ध 18 सितंबर को, त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध 19 सितंबर को, चतुर्दशी और अकाल मृत्यु पितरों का श्राद्ध 20 सितंबर को तथा अमावस्या तिथि और सर्वपितृ श्राद्ध 21 सितंबर को किया जाएगा। उन्होंने विशेष रूप से बताया कि पितरों के श्राद्ध तर्पण आदि का समय दिन के मध्याह्न काल में उचित माना गया है। इस वर्ष तृतीया और चतुर्थी तिथि 10 सितंबर को अपराह्न में अधिक व्याप्त होने के कारण दोनों का श्राद्ध उसी दिन किया जाएगा।

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