सनातन धर्म के प्रति एक हिन्दू का विचार

बृज बिहारी दुबे
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भूमिका मानव सभ्यता की जड़ों में जब हम गहराई से झाँकते हैं, तब हमें एक ऐसे जीवन-दर्शन का परिचय मिलता है जो काल के उतार-चढ़ाव के बावजूद अडिग और अविनाशी बना रहा। यही है — सनातन धर्म। "सनातन" शब्द का अर्थ है — शाश्वत, अनादि और अनंत। अर्थात जो न कभी आरंभ हुआ और न कभी अंत होगा। यही कारण है कि सनातन धर्म को केवल एक पंथ या मत नहीं कहा जा सकता, यह संपूर्ण जीवन-पद्धति है।

सनातन धर्म का मुख्य उद्देश्य मानव जीवन को उच्चतम स्तर तक पहुँचाना, आत्मा की शुद्धि करना और समाज में समरसता स्थापित करना है। यह धर्म केवल मंदिरों और पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि प्रत्येक मनुष्य के आचार-विचार, व्यवहार और जीवन-मूल्यों से जुड़ा हुआ है।




सनातन धर्म का स्वरूप

सनातन धर्म के मूल में वेद हैं। चार वेद — ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद — ज्ञान के भंडार हैं। इनके साथ ही उपनिषद, पुराण, स्मृतियाँ और गीता सनातन धर्म के गहन और व्यापक स्वरूप को उजागर करते हैं।

इस धर्म का सार कुछ इस प्रकार है:

सत्य को सर्वोच्च माना गया है।

अहिंसा जीवन का मूल है।

करुणा और सेवा समाज को जोड़ते हैं।

संयम और मर्यादा जीवन को संतुलित बनाते हैं।

भक्ति और ज्ञान आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाते हैं।





जीवन-दर्शन

सनातन धर्म का एक प्रमुख आधार है — चार पुरुषार्थ।

1. धर्म – कर्तव्य, मर्यादा और न्याय।


2. अर्थ – जीवन-निर्वाह के लिए उचित साधन।


3. काम – इच्छाओं की मर्यादित और शुद्ध पूर्ति।


4. मोक्ष – आत्मा की परम मुक्ति।



इन चारों का संतुलन ही जीवन को पूर्ण बनाता है। यही कारण है कि सनातन धर्म व्यक्ति को एकतरफा नहीं, बल्कि समग्र रूप से विकसित करता है।


इतिहास और परंपरा

सनातन धर्म किसी एक महापुरुष द्वारा स्थापित नहीं किया गया। यह अनादि है, अर्थात सृष्टि के साथ ही प्रकट हुआ।

ऋषि-मुनियों ने तपस्या और ध्यान द्वारा इस ज्ञान को जाना और आगे बढ़ाया।

रामायण और महाभारत ने इस धर्म को कथाओं के रूप में जन-जन तक पहुँचाया।

गीता ने इसे सार्वभौमिक संदेश दिया कि "कर्म ही धर्म है"।


इस धर्म ने समय-समय पर गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, आदि शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष दिए, जिन्होंने अपने-अपने तरीके से मानवता को नई दिशा दी।



आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण

सनातन धर्म केवल आत्मा और परमात्मा का विचार नहीं करता, बल्कि समाज के संगठन और कल्याण का भी ध्यान रखता है।

इसमें गुरुकुल परंपरा के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी।

वर्णाश्रम व्यवस्था का मूल उद्देश्य समाज का संतुलित संचालन था (हालाँकि बाद में इसमें विकृतियाँ आईं)।

त्यौहार और संस्कार जीवन के हर पड़ाव को पवित्र और आनंदमय बनाते हैं।



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वैश्विक योगदान

सनातन धर्म ने दुनिया को बहुत सी अमूल्य देन दी है:

योग और ध्यान — आज पूरी दुनिया मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अपनाती है।

वसुधैव कुटुम्बकम् — सारी दुनिया को एक परिवार मानने की महान सोच।

आयुर्वेद और ज्योतिष — विज्ञान और चिकित्सा का प्राचीन ज्ञान।

भक्ति आंदोलन — ईश्वर तक पहुँचने का सरल मार्ग।


आज भी विश्व के करोड़ों लोग वेदांत, गीता और योग से प्रेरणा ले रहे हैं।


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आधुनिक युग में सनातन धर्म की प्रासंगिकता

आज की भाग-दौड़ और तनावपूर्ण जीवनशैली में सनातन धर्म का संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

यह हमें संतुलन और संयम सिखाता है।

यह सहनशीलता और करुणा का पाठ पढ़ाता है।

यह हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाना सिखाता है।


जब पूरी दुनिया भौतिकवाद में डूबी हुई है, सनातन धर्म हमें याद दिलाता है कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं से नहीं, बल्कि भीतर की शांति से मिलता है।


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चुनौतियाँ और समाधान

आज सनातन धर्म कई चुनौतियों का सामना कर रहा है:

अंधविश्वास और रूढ़िवादिता।

आधुनिकता के नाम पर अपनी जड़ों से दूर होना।

धार्मिक विघटन और असहिष्णुता।


इन चुनौतियों का समाधान है — वेदों और गीता के मूल सिद्धांतों को समझना और जीवन में उतारना।


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निष्कर्ष

सनातन धर्म केवल भारत का नहीं, बल्कि पूरी मानवता का धर्म है। इसका आधार शांति, प्रेम और करुणा है। यह धर्म कहता है कि धर्म केवल पूजा नहीं, बल्कि कर्तव्य है।

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"धर्मो रक्षति रक्षितः" — जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः" — सब सुखी हों, सब निरोग हों।

सनातन धर्म ने हमें सिखाया है कि जीवन का उद्देश्य केवल जीना नहीं, बल्कि उच्च जीवन जीना है। यही कारण है कि इसे विश्व का मार्गदर्शक धर्म कहा जाता है।




लेखक : आलोक कुमार त्रिपाठी

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