एके बिंदुसार संस्थापक
भारतीय मीडिया फाउंडेशन ( नेशनल)
एवं इंटरनेशनल मीडिया आर्मी।
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आज हम चर्चा करेंगे एक ऐसे मुद्दे पर जिससे एक नई महा क्रांति के जरिए हम भारत को सशक्त बनाएंगे!
भारत के लोकतंत्र में, जहाँ जनता की आवाज को सर्वोपरि माना जाता है, वहाँ मीडिया को एक विशेष स्थान प्राप्त है। इसे अक्सर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, जो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ मिलकर राष्ट्र को एक नई दिशा देता है। लेकिन आज के समय में, जब सत्ता और प्रभाव की लड़ाई चरम पर है, यह चौथा स्तंभ भी अपनी भूमिका और पहचान को लेकर एक बड़े संघर्ष से गुजर रहा है। भारत में यह संघर्ष है 'मीडिया गिरी' बनाम 'नेतागिरी' का।
*लोकतंत्र का चौथा स्तंभ: संवैधानिक अधिकार और चुनौतियाँ!*
संविधान के तहत मीडिया को सीधे तौर पर कोई विशेष चौथे स्तंभ का अधिकार नहीं दिए गए हैं। हालाँकि, अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान में है जो मीडिया की शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है। इसी अधिकार के तहत मीडिया बिना किसी रोक-टोक के जनता तक सूचनाएँ पहुँचा सकती है, सरकार से सवाल पूछ सकती है और समाज में व्याप्त बुराइयों को उजागर कर सकती है।
लेकिन आज के दौर में, इस स्वतंत्रता पर लगातार हमले हो रहे हैं। राजनेताओं का प्रभाव, व्यावसायिक हित और टीआरपी (TRP) की दौड़ ने मीडिया के मूल उद्देश्य को कहीं न कहीं पीछे छोड़ दिया है। अब मीडिया का काम सिर्फ समाचार देना नहीं, बल्कि एक खास एजेंडा को आगे बढ़ाना भी बन गया है।
*व्यवस्था परिवर्तन की महाक्रांति:*
आज का संघर्ष केवल 'मीडिया' और 'नेता' के बीच का नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी महाक्रांति का हिस्सा है, जहाँ पुरानी व्यवस्था को बदलना जरूरी हो गया है। यह क्रांति सत्ता, सूचना और समाज के बीच के पुराने संबंधों को चुनौती दे रही है।
जनता का बढ़ता दबाव: आज की जनता पहले से कहीं अधिक जागरूक है। सोशल मीडिया और इंटरनेट की पहुँच ने हर व्यक्ति को एक पत्रकार बना दिया है। लोग अब सिर्फ खबर के दर्शक नहीं, बल्कि खबर के हिस्सेदार बन चुके हैं।
*डिजिटल मीडिया का उदय:*
जहाँ एक ओर मुख्यधारा के मीडिया पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं डिजिटल मीडिया एक नई उम्मीद बनकर उभरा है। YouTube चैनल, ब्लॉग्स, और पॉडकास्ट ने बिना किसी दबाव के अपनी बात कहने का मौका दिया है। यह एक ऐसी लड़ाई है, जिसमें पुरानी और नई सोच आमने-सामने खड़ी हैं।
*सत्य की खोज:*
इस माहौल में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि सत्य क्या है? जब हर तरफ से सूचनाओं की बौछार हो रही हो, तो यह पहचानना मुश्किल है कि कौन सी खबर सही है और कौन सी गलत। मीडिया की भूमिका अब सिर्फ खबर देने की नहीं, बल्कि सत्य की खोज करने और उसे स्थापित करने की है।
*भविष्य की राह: लोकतंत्र की नई परिभाषा;*
'मीडियागिरी' बनाम 'नेतागिरी' की यह लड़ाई सिर्फ शब्दों की नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र के भविष्य की है। अगर मीडिया अपनी जिम्मेदारी से भटकता है, तो लोकतंत्र खोखला हो जाएगा। लेकिन अगर मीडिया अपनी शक्ति का सही उपयोग करे, तो यह एक ऐसी महाक्रांति ला सकता है, जो पूरे देश की तकदीर एवं तस्वीर बदल देगी।
यह समय है कि मीडिया केवल टीआरपी और विज्ञापनों की दौड़ से बाहर निकले और जनता की आवाज बने। जब मीडिया सच के साथ खड़ा होगा, तो कोई भी नेतागिरी उसे रोक नहीं पाएगी। यही वह महाक्रांति है जो हमारे लोकतंत्र को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगी, इसलिए रोजगार सृजन एवं समृद्ध भारत के नवनिर्माण के लिए नागरिक पत्रकारिता की स्थापना बहुत ही आवश्यक एवं अनिवार्य।