नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले की धरती पर अब पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की सियासी तूफान उठने वाला है।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन (नेशनल) के बैनर तले आयोजित होने वाला पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता महासम्मेलन महज एक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक आंदोलन का बिगुल है।
इस महासम्मेलन की घोषणा ने न सिर्फ यूपी, बल्कि पूरे देश के मीडिया जगत ,राजनीतिक और सामाजिक, गलियारों में हलचल मचा दी है।
*यूनियन के संस्थापक ए.के. बिंदुसार का रणक्षेत्र में प्रवेश:*
*सत्ता के विरुद्ध मीडिया अधिकारों की निर्णायक लड़ाई:*
यूनियन के संस्थापक ए.के. बिंदुसार अपनी पूरी टीम के साथ इस महासम्मेलन को सफल बनाने के मिशन पर निकल पड़े हैं।
वह जमीनी स्तर पर मीडियाकर्मियों से सीधे संपर्क कर इस आंदोलन को धार दे रहे हैं।
उनका मिशन स्पष्ट है: मीडिया अधिकारों के लिए निर्णायक जंग छेड़ना और मीडिया की खोई हुई गरिमा को बहाल करना। उन्होंने बेहद कड़े शब्दों में कहा है, "विरोध चाहे जितना भी हो, संघर्ष चलता ही रहेगा। सत्ता बनाम व्यवस्था परिवर्तन की यह लड़ाई भारतीय मीडियाकर्मी अपने संघर्ष से जारी रखेंगे।" यह बयान सिर्फ एक घोषणा नहीं, बल्कि एक चुनौती है जो व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है।
*संवैधानिक दर्जा ही एकमात्र लक्ष्य: पत्रकारों के भविष्य का सवाल:*
यह महासम्मेलन सिर्फ एक मंच नहीं, बल्कि उन ज्वलंत मुद्दों का समाधान खोजने का एक शक्तिशाली प्रयास है, जिन पर लंबे समय से कोई ध्यान नहीं दिया गया।
ए.के. बिंदुसार लगातार नागरिक पत्रकारिता की स्थापना, मीडिया कल्याण बोर्ड, पत्रकार सुरक्षा कानून, और विधान परिषद में पत्रकारों के लिए कोटा जैसी मांगें उठाते रहे हैं। उनका अभियान यहीं नहीं रुकता। वह पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सुरक्षा पेंशन लागू करने, इनकी जनगणना कराने, और सभी जिला मुख्यालयों पर मीडिया सेंटर बनाने की भी मांग कर रहे हैं।
*इन सभी मांगों का केंद्र में एक ही मकसद है: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को संवैधानिक दर्जा दिलाना:*
बिंदुसार का मानना है कि जब तक मीडिया को संवैधानिक सुरक्षा नहीं मिलेगी, तब तक वह पूरी तरह से स्वतंत्र और निर्भीक होकर काम नहीं कर पाएगा।
उन्होंने बताया कि यह महासम्मेलन 25 सितंबर से 5 अक्टूबर के बीच आयोजित किया जाएगा, मीडिया की संवैधानिक दर्जे को हासिल करने की दिशा में एक मजबूत कदम है, जो आने वाले समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति और पत्रकारिता दोनों की दिशा बदल सकता है। यह सिर्फ एक रैली नहीं, बल्कि एक आंदोलन की ज्वाला है, जो अन्याय की हर दीवार को भेदने का दम रखती है।
उन्होंने कहा की यह महा सम्मेलन मीडिया गिरि बनाम नेतागिरी के बीच होगी, अब देखना दिलचस्प यह होगा की कितनी राजनीतिक पार्टियां इस आंदोलन की सहयोगी बनकर सामने आएंगी और पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के अधिकारों पर अपना समर्थन देती है।
बिंदुसार ने मीडिया को बताया कि कई सवालों को लेकर यह महासम्मेलन आयोजित होगा।
रिपोर्ट-धर्मेंद्र कुमार