नई दिल्ली (एके बिंदुसार):पूर्वांचल में सत्ता का संग्राम
उत्तर प्रदेश की राजनीतिक बिसात पर 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए अभी से गोटें बिछाई जा रही हैं, और इस बार पूर्वांचल के किले को भेदने के लिए सुहेलदेव सम्मान स्वाभिमान पार्टी (SSSP) ने समाजवादी पार्टी (SP) के साथ मिलकर एक मजबूत गठबंधन की नींव रखी है। SSSP के राष्ट्रीय अध्यक्ष, जुझारू नेता महेंद्र राजभर के कुशल नेतृत्व में, पार्टी न केवल अपने संगठन को विस्तार दे रही है, बल्कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी के प्रगतिशील मार्गदर्शन में सत्ता के शीर्ष पर पहुँचने का दृढ़ संकल्प भी लिए हुए है। यह गठबंधन सिर्फ एक चुनावी समझौता नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नए सामाजिक समीकरण का उदय है, जिसका लक्ष्य वंचितों और शोषितों की आवाज़ को बुलंद करना है।
*चुनावी रणभूमि में SSSP की धुआंधार तैयारी: कार्यकर्ताओं में जोश का संचार*
सुहेलदेव सम्मान स्वाभिमान पार्टी (SSSP) के उत्तर प्रदेश के प्रदेश प्रवक्ता और वाराणसी संसदीय क्षेत्र से सांसद प्रत्याशी लोक नायक मिंटू राजभर ने जिस ऊर्जा के साथ यह घोषणा की है कि पार्टी कार्यकर्ता 2027 विधानसभा चुनावों के लिए अभी से मैदान में उतर चुके हैं, वह दर्शाता है कि SSSP कोई ढीली-ढाली रणनीति नहीं, बल्कि पूर्ण समर्पण के साथ चुनावी जंग जीतने को तैयार है। मिंटू राजभर ने पुरजोर तरीके से कहा है कि "SSSP गठबंधन धर्म का पूरी तरह से पालन करेगी और चुनाव में पूरी ताक़त से उतरेगी, ताकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई जा सके।" यह बयान केवल एक घोषणा नहीं, बल्कि भाजपा सरकार के खिलाफ एक खुली चुनौती है, जो यह संदेश देता है कि विपक्ष एकजुट होकर इस बार कोई कसर नहीं छोड़ेगा।
*संगठनात्मक मज़बूती:'बूथ से विधानसभा' तक की रणनीति*
राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र राजभर के निर्देश पर, पार्टी के भीतर नई समितियों के गठन का कार्य युद्धस्तर पर शुरू हो गया है। यह कवायद सिर्फ कागजी नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मिंटू राजभर ने स्पष्ट किया है कि विधानसभा प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया भी प्रारंभ हो चुकी है, और पार्टी अपनी ओर से संभावित उम्मीदवारों की सूची तैयार कर रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्याशियों की अंतिम घोषणा गठबंधन के उच्च कमान, यानी दूरदर्शी नेता अखिलेश यादव और मेहनती महेंद्र राजभर के संयुक्त दिशा-निर्देशन में की जाएगी। यह दर्शाता है कि गठबंधन में विश्वास और समन्वय की मजबूत डोर है, जो उन्हें एक इकाई के रूप में चुनाव लड़ने में मदद करेगी।
*राजभर और पिछड़े वर्गों का 'अधिकार' मुद्दा: राजनीतिक धार और सामाजिक न्याय का संगम*
मिंटू राजभर ने जिस मुखरता से राजभर समुदाय और अन्य पिछड़े वर्गों (विशेषकर अधिकार वंचित समुदाय के संदर्भ में, यदि वे भी पिछड़े वर्ग में आते हैं) की समस्याओं को उठाया है, वह इस गठबंधन की केंद्रीय धुरी है। उन्होंने इन समुदायों के सामने आने वाली सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों पर विस्तृत रूप से बात की, और उनके समाधान के लिए ठोस कदमों की वकालत की। यह केवल राजनीतिक बयानबाजी नहीं है, बल्कि सदियों से उपेक्षित इन वर्गों को उनका वाजिब हक दिलाने की दिशा में एक मजबूत प्रतिबद्धता है। SSSP जानती है कि पूर्वांचल में राजभर और ऐसे ही अन्य पिछड़े वर्ग निर्णायक भूमिका निभाते हैं, और उनके मुद्दों को उठाना सीधे-सीधे चुनावी सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। यह रणनीति सामाजिक न्याय की वकालत करते हुए, इन वर्गों के वोट बैंक को मजबूती से अपने पाले में लाने का प्रयास है।
मिंटू राजभर का कहना है कि राजभर समाज के नेता जो विधायक और सांसद बने हुए हैं जो आज सत्ता के साथ मिलकर मलाई खा रहे हैं उन लोगों ने इस समाज के आर्थिक सामाजिक ताने-बाने को तोड़ा है और उनके सामाजिक प्रतिष्ठा को चकनाचूर किया।
*'मिशन 2027': उत्तर प्रदेश की राजनीति का नया अध्याय*
कुल मिलाकर, सुहेलदेव सम्मान स्वाभिमान पार्टी और समाजवादी पार्टी का यह गठबंधन उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह सिर्फ सीटों के बंटवारे का गठबंधन नहीं, बल्कि एक साझा विचारधारा और वंचित समाज को सशक्त करने के दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। पूर्वांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने और 2027 के विधानसभा चुनावों में एक मजबूत दावेदार के रूप में उभरने का उनका लक्ष्य केवल एक ख्वाब नहीं, बल्कि एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा हैं यह इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मिंटू राजभर जो वाराणसी में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में प्रत्याशी भी रहे उन्होंने नमक रोटी खाकर जिला मुख्यालय पर पिछड़े और वंचितों की आवाज उठाई थी और उनका अगर हम समीक्षा करते हैं तो यह पाते हैं कि उन्हें कई राजनीतिक पार्टियों से ऑफर भी मिला था उन्हें पैसा और गाड़ी की सारी सुविधाएं देने की बात थी लेकिन उन्होंने इनकार किया और उन्होंने एक नए दल को चुना इससे साबित होता है कि यह लड़ाई वाकई में पिछड़े दलित और शोषित ,वंचितों के संवैधानिक अधिकारों की होने जा रही है।
*यह गठबंधन भाजपा सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करेगा, और उत्तर प्रदेश में एक नई राजनीतिक दिशा तय करने की क्षमता रखता है, जहां सामाजिक न्याय और समावेशी विकास ही केंद्र बिंदु होंगे। यह संदेश स्पष्ट है: सत्ता परिवर्तन होगा, और वह जनता के दम पर होगा!*