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के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज कुमार सचान ने एक और संवैधानिक पहल की है गरीब नागरिकों के कानूनी हक के लिए विधि प्राधिकरण में लगाई rti
मुफ़्त कानूनी सहायता की संस्थाएँ पारदर्शिता से कोसों दूर, RTI की धारा 4 और 26 का पालन नहीं
भारतीय संविधान और Legal Services Authorities Act, 1987 के अंतर्गत NALSA, SLSA और DLSA जैसी संस्थाएँ गरीब, वंचित, महिलाओं, बच्चों और शोषित वर्ग को मुफ्त कानूनी सहायता देने के लिए बनाई गई थीं। लेकिन जमीनी स्तर पर इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 4 के तहत प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण को अपनी कार्यप्रणाली, जिम्मेदारियाँ, सेवा का ढांचा और नियमावली सार्वजनिक डोमेन में स्वतः उपलब्ध करानी होती है।
वहीं धारा 26 के तहत केंद्र और राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वे नागरिकों को RTI अधिनियम और उससे संबंधित अधिकारों के प्रति व्यापक प्रचार-प्रसार और प्रशिक्षण दें।
लेकिन वास्तविकता यह है कि –
NALSA, SLSA और DLSA की कार्यप्रणाली की सही और अद्यतन जानकारी आम नागरिकों को उपलब्ध नहीं कराई जाती।
इन संस्थाओं से संपर्क करने के लिए ऑनलाइन/ऑफलाइन तरीकों की स्पष्ट जानकारी वेबसाइट और कार्यालयों में नहीं दी जाती।
नागरिकों को अक्सर यह नहीं बताया जाता कि मुफ्त कानूनी सहायता पूर्णतः निशुल्क है और किसी भी प्रकार का शुल्क लेना गैरकानूनी है।
कई बार अधिकारी नागरिकों के आवेदन पर कार्यवाही नहीं करते, जिससे गरीब और शोषित वर्ग न्याय से वंचित रह जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सूचना न देना, या अधिनियम की धारा 4 और 26 का पालन न करना भी भ्रष्टाचार का ही एक रूप है, क्योंकि इससे नागरिकों को उनके अधिकार से वंचित किया जाता है।
जनहित का प्रश्न
अगर ये संस्थाएँ ही अपनी जवाबदेही और पारदर्शिता से बचेंगी तो गरीब, मज़दूर, महिलाएँ और समाज का वंचित वर्ग किसके सहारे न्याय पाएगा?
कानूनन यह संस्थाएँ न केवल जिम्मेदार हैं बल्कि नागरिकों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराना इनका संवैधानिक कर्तव्य है।
आज आवश्यकता है कि RTI अधिनियम की धारा 4 (स्वतः प्रकाशन) और धारा 26 (प्रशिक्षण एवं प्रचार) का सख्ती से पालन कराया जाए और जो अधिकारी इन कर्तव्यों की अनदेखी करते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही हो।
