वाराणसी। शिवपुर में आयोजित 33 दिवसीय प्राचीन और प्रसिद्ध रामलीला का भव्य समापन बुधवार, 8 अक्टूबर 2025 को सहकुशल संपन्न हुआ। यह रामलीला न केवल शिवपुर के निवासियों के लिए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक है, बल्कि वाराणसी की समृद्ध परंपराओं और भक्ति भावना का जीवंत उदाहरण भी है। इस वर्ष रामलीला ने अपनी भव्यता, भक्ति-भाव और कलात्मक प्रस्तुति से सभी राम भक्तों का मन मोह लिया। अंतिम दिन सनकादिक चरित्र और बाग बिहार प्रसंग की मनोरम प्रस्तुति ने दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया। सनकादिक चरित्र और बाग बिहार का मनोहर और रोचक मंचन रामलीला के समापन दिन सनकादिक चरित्र और बाग बिहार का प्रसंग प्रस्तुत किया गया, जो दर्शकों के लिए अविस्मरणीय रहा। इस प्रसंग में प्रभु श्रीराम अपने भाइयों लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और भक्त हनुमान जी के साथ बाग बिहार के लिए निकलते हैं। मंच पर राम दरबार का अलौकिक और मनोरम चित्रण हुआ, जिसमें प्रभु श्रीराम की दिव्यता, उनके भाइयों की भक्ति और हनुमान जी की निष्ठा का सुंदर समन्वय देखने को मिला। इस दृश्य ने उपस्थित दर्शकों को भावुक कर दिया, और रामलीला मैदान तालियों की गड़गड़ाहट व श्रीराम की जय-जयकार से गूंज उठा। कलाकारों ने अपने अभिनय और भक्ति-भाव से इस प्रसंग को इतना जीवंत किया कि दर्शकों को लगा मानो वे अयोध्या के उस पवित्र क्षण के साक्षी बनगया हैं। इसके बाद प्रभु श्रीराम और यादव (पात्र: सोमारू यादव) के बीच मनोरंजक लीला का प्रसंग प्रस्तुत हुआ, जिसने दर्शकों का मन जीत लिया। इस रोचक प्रसंग में प्रभु श्रीराम ने प्रसन्न होकर यादव के साथ आनंदमय लीला की, जिसे देखने के लिए सैकड़ों की भीड़ उमड़ पड़ी।
रामलीला समिति और सामुदायिक सहयोग की अहम भूमिका 33 दिवसीय लीला के इस भव्य रामलीला के सफल आयोजन में शिवपुर रामलीला समिति की महत्वपूर्ण भूमिका रही। समिति के पदाधिकारियों, कार्यकारिणी सदस्यों, विशिष्ट और आमंत्रित सदस्यों के साथ-साथ रामायणी बंधुओं और स्थानीय राम भक्तों का सहयोग इस आयोजन की रीढ़ रहा। मंच सज्जा, प्रकाश व्यवस्था, ध्वनि प्रबंधन और कलाकारों के प्रशिक्षण में समिति ने कोई कसर नहीं छोड़ी। महीनों पहले से शुरू हुई तैयारियों ने प्रत्येक प्रसंग को भव्य और प्रामाणिक रूप प्रदान किया।स्थानीय निवासियों ने भी इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। स्वयंसेवकों ने मंच प्रबंधन, दर्शक व्यवस्था और अन्य तकनीकी कार्यों में सहयोग किया। शिवपुर के व्यापारियों और दानदाताओं ने आर्थिक सहयोग प्रदान कर इस प्राचीन परंपरा को जीवित रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व शिवपुर की रामलीला केवल एक नाट्य प्रस्तुति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो भक्तों को भगवान राम के आदर्शों और मर्यादा पुरुषोत्तम के जीवन से जोड़ती है। 33 दिनों तक चले इस आयोजन में रामायण के विभिन्न प्रसंग राम जन्म, सीता स्वयंवर, वनवास, रावण वध से लेकर राम राज्याभिषेक तक को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया। अंतिम दिन का बाग बिहार प्रसंग प्रभु श्रीराम के शांत और सौम्य स्वरूप को दर्शाता है, जो भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा। यह आयोजन युवा पीढ़ी को रामायण की शिक्षाओं से जोड़ने में भी महत्वपूर्ण रहा। समापन पर आयोजित भव्य समारोह में समिति के सदस्यों और कलाकारों को सम्मानित किया गया। स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों ने शिवपुर की इस प्राचीन परंपरा को बनाए रखने के लिए समुदाय की सराहना की।
रामायण वाचन और मृदंग की ताल शिवपुर की रामलीला एक सुर-ताल में मृदंग के साथ रामायण के पाठ पर आधारित है। रामायण वाचक भोलानाथ शर्मा, मनोज केसरी, वंश नारायण, रामबली पांडेय, नत्थू यादव, अनुराग मिश्रा, जवाहरलाल मौर्य और मृदंग वादक दीनानाथ सेठ के परिवार ने पीढ़ियों से इस परंपरा को जीवित रखा है। मृदंग की ताल और रामायण के छंदों पर आधारित यह मंचन दर्शकों को भक्ति के रस में डुबो देता है। सामुदायिक एकता का प्रतीक शिवपुर की रामलीला वाराणसी की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह आयोजन भक्ति और आनंद का स्रोत होने के साथ-साथ सामुदायिक एकता और सहयोग का प्रतीक है। श्री रामलीला सेवा समिति के मंत्री संतोष मिश्रा, उपाध्यक्ष विकास सिंह, कोषाध्यक्ष आर.एन. सिंह, त्रिलोकी सेठ, रवि कपूर कल्लू, संजय मिश्रा, सुधांशु पांडेय, फूलचंद मौर्या, विजय केसरी, दिलीप गुप्ता, मनोहर केसरी, रमेश केसरी, पार्षद बलिराम प्रसाद कनौजिया, रोहित मिश्रा, सोमारू यादव, पूर्व मंत्री नरेंद्र श्रीवास्तव, नर्सिंग जायसवाल और समस्त राम भक्तों का योगदान इस आयोजन को अविस्मरणीय बनाता है।
मीडिया की भूमिका परफेक्ट मिशन न्यूज़ पेपर के संवाददाता और श्री रामलीला सेवा समिति के कार्यकारिणी सदस्य वरिष्ठ मीडिया प्रभारी आनंद तिवारी व रवि प्रकाश बाजपेई रिंकू ने रामकाज को लेखनी के माध्यम से काशीवासियों, प्रदेश और देश तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिवपुर की यह रामलीला आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी और सनातन धर्म को जीवित रखने का संदेश देती रहेगी।