(रिपोर्ट सत्यदेव पांडे)
सोनभद्र। कांग्रेसी प्रतिनिधियों द्वारा लखनऊ पहुंचकर खनन निदेशक माला श्रीवास्तव को सौंपे गए शिकायती पत्र के बाद जिले में अचानक हलचल मच गई — सरकारी स्तर पर जांच टीम भेजी जाने की खबर ने लोगों में उम्मीद जगा दी। पर आश्चर्य की बात यह रही कि टीम के जिले पहुँचने से पहले ही खनन कारोबारियों को सबकुछ भांप हो गया था; परिणामस्वरूप खदानों में मशीनें हटा दी गईं और हलचल के स्थान पर घोर सन्नाटा छा गया।
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेसी प्रतिनिधिमंडल ने लखनऊ में निदेशालय को विस्तार से बताया कि ओबरा तहसील के कुछ पट्टाधारक नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं और स्थानीय स्तर पर मानक से अधिक खनन हो रहा है। शिकायत मिलते ही प्रशासन ने तुरंत टीम रवाना कर दी, लेकिन टीम के आने की सूचना किस-से और कैसे पहले ही खदान मालिकों तक पहुँच गई, यह पहेली अभी अनसुलझी बनी हुई है।
जांच के नाम पर भेजी गई टीम के जिले में पहुँचते ही खदानों का मिज़ाज बदल चुका था — जेसीबी, टीपर और अन्य भारी उपकरण नदारद थे, खदानों के गेट बंद कर दिए गए थे और आसपास का माहौल उग्र खामोशी सा लग रहा था। स्थानीय युवा और ग्रामीण कहते हैं कि यह वही पुराना खेल है — सूचना आनी है, ट्रकों-यंत्रों का ठिकाना बदलना है और देखने वाली टीम को सिर्फ़ ‘दिखावे’ के लिए ही कुछ व्यवस्था दिखाई जानी है।
स्थानीय स्तर पर यह भी बातें उठ रही हैं कि खनन कारोबारियों के प्रभावशाली कनेक्शनों और विभागीय कर्मचारियों के बीच संलिप्तता ने यह व्यवस्था बनाकर रख दी है, जिससे असल कार्रवाई ठण्डे बस्ते में चली जाती है। जनता का सवाल सादा है — जब शिकायत लखनऊ तक पहुँच सकती है और निदेशालय कार्रवाई भेज सकता है, तो जांच की वास्तविक प्रभावशीलता पर शक क्यों? किसने टीम का पहले ही पता दे दिया — यह जांच का अहम हिस्सा होना चाहिए।
अब नजरें इस बात पर टिक गई हैं कि भेजी गई टीम ठोस प्रमाणों के साथ वापस रिपोर्ट देगी या फिर यह भी काग़ज़ातों में सिमट कर रह जाएगा। जबकि स्थानीय लोग और सामाजिक कार्यकर्ता दबदबे के खिलाफ सख्त कदम माँग रहे हैं, प्रशासन को न केवल पारदर्शिता का भरोसा दिलाना होगा बल्कि यह भी दिखाना होगा कि शिकायतों पर त्वरित और प्रभावी कार्रवाई होती है — वरना कागज़ों पर लिखा ‘जीरो टॉलरेंस’ और जमीन पर चलती मिलीभगत के बीच की दूरी और बढ़ती ही जाएगी।
