सिन्दरी बलियापुर में पुरी आस्था के साथ मनाया गया करवा चौथ

बृज बिहारी दुबे
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(रिपोर्ट प्रेम प्रकाश शर्मा)

सिन्दरी, धनबाद , -सिन्दरी बलियापुर में करवा चौथ का पर्व, सुहागिनों के द्वारा बड़ी धूम-धाम से मनाया गया। सिन्दरी अंचल के कांड्रा, गौशाला, डोंमगढ़, शहरपुरा एवं बलियापुर में सुहागिनों द्वारा व्रत रखा गया। पिछले एक सप्ताह से महिलाएं बाजार में खरीदारी में जुटी हुई थी। गुरुवार को कपड़े की दुकानो में साड़ी, लहगे और डिजाइन दार कपड़े एवं जेनरल स्टोर में सोलह सिंगार के सामान की महिलाओं ने जमकर खरीदारी की।  महिलाओं ने स्वयं को गहनों और मेहंदी से सजाया । सुहागिनों को इस त्योहार के लेकर विशेष उत्साह रहता है। शुक्रवार को महिलाओं ने सोलह सिंगार कर निर्जला व्रत रखा। करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। करवा चौथ विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है और रात को चांद देखकर अर्ध्य देने के बाद व्रत खोलती है। पति की दीघार्यु स्वास्थ्य सुख समृद्धि ऐश्वर्य तथा सौभाग्य के साथ-साथ जीवन के हर क्षेत्र में  सफलता की कामना से सुहागिन महिलाओं द्वारा व्रत मनाया जाता है। यह भारत बिहार , झारखंड,पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान के अलावा अनेकों जगहों पर  पर्व को मनाया जाता है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले  शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियों करवाचौथ का व्रत बडी धूमधाम एवं उत्साह के साथ मनाती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन मनाया जाता है । पति की दीघायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं। लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को  (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत मनाती हैं।

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