सरदार वल्लभभाई पटेल: भारत की एकता के शिल्पकार

बृज बिहारी दुबे
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1. स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ। वे एक साधारण किसान परिवार से थे, पर उनकी सोच असाधारण थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव से शुरू की और फिर इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की।
भारत लौटने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की, लेकिन महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।

उन्होंने 1918 में खेड़ा सत्याग्रह और 1928 में बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया — जहाँ किसानों को ब्रिटिश शासन द्वारा लगाई गई अन्यायपूर्ण कर-नीति से राहत मिली। इन्हीं आंदोलनों के बाद जनता ने उन्हें प्यार से “सरदार” की उपाधि दी।

उन्होंने असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे कई आंदोलनों में सक्रिय नेतृत्व दिया और जेल यात्राएँ भी कीं।
उनकी विशेषता थी— संगठन, अनुशासन और दृढ़ता।
गांधी जी उन्हें “मेरे संगठन की रीढ़” कहा करते थे।


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2. आजादी के बाद की भूमिका और संविधान में योगदान

भारत की स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी — 562 रियासतों का भारत संघ में विलय।
सरदार पटेल ने अपने कौशल, बुद्धिमत्ता और दृढ़ निश्चय से बिना किसी बड़े युद्ध के लगभग सभी रियासतों को भारत में मिला लिया।
इसलिए उन्हें कहा गया —

> “भारत के लौह पुरुष और एकीकरण के शिल्पकार।”



वे स्वतंत्र भारत के पहले उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने।
संविधान सभा में उन्होंने देश के प्रशासनिक ढांचे, अखंडता और कानून व्यवस्था की नींव मजबूत की।
उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की स्थापना की, ताकि देश के शासन में एकरूपता बनी रहे।
उनका मानना था —

> “राष्ट्र की एकता और अखंडता सर्वोपरि है, कोई भी व्यक्ति या प्रांत उससे ऊपर नहीं।”


3. समाज और देश के प्रति उनकी सोच

सरदार पटेल की सोच बहुत व्यावहारिक थी।
वे भावनाओं के साथ-साथ व्यवहारिक निर्णयों के पक्षधर थे।
उनका मानना था कि —

> “राजनीति में भावनाएं नहीं, बल्कि राष्ट्रहित सर्वोच्च होना चाहिए।”



उन्होंने समाज को अनुशासन, एकता और कर्मशीलता का संदेश दिया।
उनकी दृष्टि में — मजबूत प्रशासन, जिम्मेदार नागरिक और एकजुट समाज ही भारत की सबसे बड़ी ताकत हैं।


 एक प्रेरणादायक कहानी

बारडोली आंदोलन के दौरान जब अंग्रेज अधिकारी किसानों की जमीन जब्त करने पहुँचे, तब एक बुजुर्ग महिला आगे आई और बोली —

> “हमारी जमीन लो या जान लो, पर अन्याय नहीं सहेंगे।”



अंग्रेज अधिकारी ने गुस्से में कहा —
“तुम्हें कौन बचाएगा?”

वह महिला बोली —

> “हमारा सरदार पटेल हमें बचाएगा!”



यह सुनकर पूरे बारडोली में एक ही स्वर गूंजा —

> “हमारा सरदार!”



और यही वह क्षण था जब वल्लभभाई पटेल “सरदार पटेल” बन गए — किसानों के, जनता के, और पूरे भारत के नेता।


समापन संदेश

आज जब देश चुनौतियों से गुजर रहा है, तब हमें सरदार पटेल की सोच से प्रेरणा लेनी चाहिए —
राष्ट्र पहले, स्वार्थ बाद में।
उनकी मूर्ति — “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” — केवल एक प्रतिमा नहीं, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और दृढ़ता का प्रतीक है।

> “अखंड भारत की एकता में ही हमारी शक्ति है — यही सरदार पटेल का सच्चा संदेश भारतीय मीडिया फाउंडेशन नेशनल – RTI CELL

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