शिक्षक दिवस वनाम शिक्षण दिवस! शिक्षक, समाज, राष्ट्र और समाजवाद की धारणाएँ:

बृज बिहारी दुबे
By -

एके बिंदुसार  संस्थापक 
भारतीय मीडिया फाउंडेशन (नेशनल)
एवं  संयोजक -इंटरनेशनल मीडिया आर्मी,


 एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। जहाँ शिक्षक समाज का निर्माण करते हैं, वहीं समाज मिलकर राष्ट्र बनाता है, और समाजवाद इन सभी के बीच समानता और न्याय स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। हालाँकि, जब शिक्षकों की नैतिकता का पतन होता है, तो इसका सीधा असर समाज और राष्ट्र के ताने-बाने पर पड़ता है, जिससे समाजवादी मूल्यों को भी ठेस पहुँचती है।
​शिक्षक, समाज, राष्ट्र और समाजवाद की धारणाएँ
​शिक्षक: शिक्षक सिर्फ़ ज्ञान देने वाले व्यक्ति नहीं होते, बल्कि वे छात्रों के चरित्र और भविष्य का निर्माण करते हैं। वे समाज के मार्गदर्शक और नैतिकता के स्तंभ होते हैं।
​समाज: समाज व्यक्तियों का एक संगठित समूह है जो आपसी संबंधों, संस्कृति और नियमों से बँधा होता है। यह हर व्यक्ति के लिए एक सुरक्षा कवच और विकास का अवसर प्रदान करता है।
​राष्ट्र: राष्ट्र एक भौगोलिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक इकाई है जो लोगों की सामूहिक पहचान, एकता और देशभक्ति से बनती है।
​समाजवाद: समाजवाद एक ऐसी राजनीतिक और आर्थिक विचारधारा है जो समाज में समानता, सामाजिक न्याय और सामूहिक कल्याण पर ज़ोर देती है। इसका उद्देश्य संसाधनों और अवसरों का न्यायपूर्ण वितरण करना है ताकि कोई भी वर्ग पिछड़ा न रहे।
​शिक्षकों की नैतिकता का पतन और सामाजिक ताना-बाना
​आधुनिक युग में शिक्षकों की नैतिकता में गिरावट के कई कारण हैं, जो समाज के लिए एक बड़ी चुनौती है।
​व्यावसायिकता का हावी होना: शिक्षा को एक सेवा के बजाय सिर्फ़ एक व्यवसाय के रूप में देखा जा रहा है। इसके कारण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बजाय धन कमाने पर ध्यान केंद्रित हो रहा है।
​नैतिक मूल्यों में कमी: कुछ शिक्षक अपने पद का दुरुपयोग करते हैं, जिससे छात्रों और अभिभावकों का विश्वास टूटता है।
​अज्ञानता और अकर्मण्यता: नए ज्ञान का अभाव और पुराने तरीकों पर निर्भरता शिक्षा की गुणवत्ता को कम करती है, जिससे समाज में ज्ञान का स्तर गिरता है।
​जब शिक्षक स्वयं नैतिक मूल्यों का पालन नहीं करते, तो वे छात्रों में ईमानदारी, सम्मान और ज़िम्मेदारी जैसे गुण विकसित नहीं कर पाते। इससे समाज में अविश्वास, अस्थिरता और नैतिक मूल्यों का ह्रास होता है।
​समाजवाद पर प्रभाव
​शिक्षकों की नैतिकता का पतन सीधे तौर पर समाजवादी मूल्यों को प्रभावित करता है। समाजवाद का मूल सिद्धांत समानता और न्याय है। जब शिक्षा प्रणाली में ही भ्रष्टाचार और भेदभाव होता है, तो यह असमानता को और बढ़ावा देता है।
​असमान शिक्षा: आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती, जबकि धनी वर्ग के बच्चे बेहतर शिक्षा प्राप्त करते हैं। यह शिक्षा की असमानता, सामाजिक असमानता को और गहरा करती है।
​सामाजिक न्याय का अभाव: जब योग्य छात्रों को सिर्फ़ इसलिए अवसर नहीं मिलते क्योंकि वे पैसे नहीं दे सकते, तो यह सामाजिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है।
​नैतिक पूंजी का ह्रास: एक मजबूत समाजवादी समाज के लिए नैतिक पूंजी (Moral Capital) बहुत ज़रूरी है, जो नागरिकों में ईमानदारी और सामाजिक ज़िम्मेदारी की भावना से आती है। जब शिक्षक ही नैतिक मूल्यों का पालन नहीं करते, तो यह नैतिक पूंजी का ह्रास होता है।
​इस प्रकार, शिक्षकों की नैतिकता का पतन न केवल सामाजिक ताने-बाने को कमज़ोर करता है, बल्कि यह समाजवादी सिद्धांतों को भी चुनौती देता है। एक मजबूत राष्ट्र और एक न्यायपूर्ण समाज के लिए, शिक्षकों की नैतिकता को पुनः स्थापित करना अति आवश्यक है।

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