लोकतंत्र के स्तंभों को हाशिए पर रखना महंगा पड़ेगा: तेजस्वी के 'प्रण' से पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता आक्रोशित! राजनीतिक दलों के लिए राष्ट्रव्यापी चेतावनी:

बृज बिहारी दुबे
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पटना/नई दिल्ली, 29 अक्टूबर, 2025
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नेता प्रतिपक्ष श्री तेजस्वी यादव द्वारा जारी महागठबंधन के साझा घोषणा पत्र "बिहार का तेजस्वी प्रण" पर देशव्यापी हंगामा खड़ा हो गया है। भारतीय मीडिया फाउंडेशन नेशनल कोर कमेटी और बिहार के पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आरोप लगाया है कि इस 25 सूत्रीय घोषणा पत्र में पत्रकारिता और सामाजिक कार्यों से जुड़े लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाओं का पूर्णतः अभाव है।
आक्रोशित संगठनों ने इसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ और समाज सेवकों के प्रति घोर उपेक्षा बताया है, और साफ शब्दों में कहा है कि तेजस्वी यादव ने इन वर्गों के "विनाश का प्रण" ले लिया है।
उपेक्षा पर गंभीर सवाल: 'तेजस्वी प्रण' में सबको स्थान, पर इन्हें क्यों नहीं?
घोषणा पत्र में जहाँ सरकारी नौकरी, पुरानी पेंशन योजना (OPS), संविदा कर्मियों को स्थायी करने, महिला स्वयं सहायता समूहों को आर्थिक सहायता, किसानों को एमएसपी और गरीबों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली जैसे बड़े और लोक-लुभावने वादे शामिल हैं, वहीं पत्रकार सुरक्षा कानून, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन या सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए किसी भी योजना का दूर-दूर तक ज़िक्र नहीं है।
पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रमुख आरोप:
 लोकतंत्र के लिए अन्याय: जब हर वर्ग (युवा, महिला, किसान, संविदाकर्मी, दिव्यांग, EBC) के लिए योजना है, तो निरंतर जान जोखिम में डालकर काम करने वाले पत्रकारों और ज़मीनी स्तर पर बदलाव लाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को क्यों भूला दिया गया?
 सुरक्षा का अभाव: देश और प्रदेश में पत्रकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं, इसके बावजूद घोषणा पत्र में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने का कोई वादा नहीं है।
  आर्थिक असुरक्षा: पत्रकारों के लिए पेंशन, निःशुल्क स्वास्थ्य बीमा या फ्रीलांस कार्यकर्ताओं के लिए कोई आर्थिक सहायता योजना न होना उनकी गंभीर आर्थिक असुरक्षा को दर्शाता है।
 *देश के राजनीतिक दलों के लिए 'क्रिया से भरपूर' संदेश और कड़ी चेतावनी*
बिहार की यह घटना देश भर के राजनीतिक दलों के लिए एक गंभीर चेतावनी है। पत्रकारिता और सामाजिक कार्य किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र की रीढ़ होते हैं। इनकी उपेक्षा न केवल अनैतिक है, बल्कि लोकतंत्र के भविष्य के लिए भी खतरनाक है।
> "हम, देश के सभी पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता, इस मंच से सभी राजनीतिक दलों को यह स्पष्ट संदेश देते हैं: अब केवल हमारी समस्याओं को कवर करने की अपेक्षा न रखें। जिस तरह आप अन्य वर्गों के कल्याण के लिए 'प्रण' लेते हैं, हमारे सुरक्षा, सम्मान और कल्याण को भी अपने एजेंडे में शामिल करें। जो दल हमारे संवैधानिक दायित्वों की रक्षा और हमारे जीवनयापन को सुरक्षित करने का 'प्रण' नहीं लेगा, उसे हमारा राष्ट्रव्यापी विरोध झेलना पड़ेगा। लोकतंत्र के स्तंभों को हाशिए पर रखना किसी भी दल के लिए महंगा पड़ेगा! यह संघर्ष अब न्याय के लिए है!"
यह आक्रोश केवल एक घोषणा पत्र के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि दशकों से जारी संस्थागत उपेक्षा के ख़िलाफ़ है, जो अब सक्रिय विरोध के रूप में सामने आ रहा है।

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